गोपेश्वर। जोतिर्मठ विकासखंड के सलूड़ डुंग्रा गांव में हर वर्ष की तरह रम्माण मेले का भव्य आयोजन किया गया। ज्योतिर्मठ ब्लाक के सलूड़-डुंग्रा गांव की रम्माण प्राचीन मुखौटा शैली और भल्दा परंपरा की लोक संस्कृति को जीवंत रखे हुए है। इसके चलते ही यह सांस्कृतिक विरासत अब हर एक के दिल में इस कदर रच बच गई है कि लोग रम्माण का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं।पहाड़ों में पौराणिक काल से रामायण तथा महाभारत की असंख्य विधाएं मौजूद रही हैं। हालांकि कई विधाओं का अवसान हो चुका है किंतु तमाम तरह के थपेड़ों को झेलने के बावजूद चमोली जिले के पैनखंडा अथवा ज्योतिर्मठ ब्लाक की रम्माण ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परंपरा का संवाहक बनी है। रम्माण को जीवंत रखने के प्रयासों से ही यह सांस्कृतिक धरोहर यूनेस्को से विश्व धरोहर के रूप में दर्ज हो चुकी है। करीब = 500 वर्ष से अधिक पुरानी यह सांस्कृतिक विरासत आज भी जीवंत बनी है। हर वर्ष बैशाखी के दिन से रम्माण का मंचन शुरू हो जाता है। परंपरानुसार भूमियाल क्षेत्रपाल मंदिर – सलूड़ डुंग्रा में रात को 18 मुखौटों की पूजा अर्चना और मंचन की परंपरा अब भी जारी है। इसके तहत इस साल 30 अप्रैल को सलूड डुंग्रा में रम्माण का मुख्य प्रदर्शन हुवा। आज इस साल की रम्माण का समापन भी होगा । बताते चलें कि आदिगुरु शंकराचार्य ने जब ज्योतिर्मठ में हिंदू धर्म के प्रति जागृति लाने के लिए ज्योतिष्पीठ की स्थापना की थी तो हिंदू देवी देवताओं के मुखौटे पहनाकर उन्होने धर्म के प्रति आस्था जगाने के लिए लोगों को गांव गांव भेजा था। पौराणिक काल से ही पैनखंडा इलाके में रम्माण ने जड़ें जमा दी थी और आज इसकी जड़े विश्व पटल पर तक फैल गई है। 2 अक्टूबर 2009 को पैनखंडा के सलूड़-डुंग्रा की रम्माण को यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया। 2007 तक रम्माण सिर्फ पैनखंडा तक ही सीमित थी किंतु अब यह रम्माण उत्तराखंड समेत भारत की सांस्कृतिक विरासत का दर्जा हासिल कर गई है। सलूड़-डुंग्रा गांव के निवासी डॉ. कुशल सिंह भंडारी के मार्गदर्शन में रम्माण ने बड़ा मुकाम हासिल किया है। उन्हांने रम्माण को लिपिबद्ध कर इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। इसके बाद गढ़वाल विश्व विद्यालय लोक कला निस्पादन केंद्र के निदेशक प्रो डीआर पुरोहित के सहयोग से इसमें निखार लाया गया। तब इसे 2008 में दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र तक पहुंचाया गया। इसमें भविष्यबदरी सुभाई के थान सिंह नेगी तथा छायाकार अरविंद मुङ्गिल ने भी रम्माण को व्यापकता देने में सहयोग दिया। गणतंत्र दिवस की दिल्ली परेड में पूरा देश रम्माण का दीदार कर चुका है। दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में भी यहां के कलाकार अपना जलवा बिखेर गए हैं। अब तो यह रम्माण हर एक के मन मस्तिष्क तथा दिलों में रच बस सी गई है। ऐसे होता है रम्माण का मंचन: जागर शैली की रम्माण के मंचन में ढोल दमाऊं झांझर, मंजीरे, भंकोरे उपयोग में लाए जाते हैं। घाघरा, रेशमी साफे, चूड़ीदार पायजामे इसके परिधान है। नृत्य नाटिका में 18 मुखौटे, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं तथा 8 भंकोरों के जरिए इसका बेहतर मंचन किया जाता है। मुख्य पात्रों में कुरू जोगी, बण्यां-बण्यांण, माल, म्योर-मुरैण का नृत्य मंचन गायन शैली में किया जाता है। रम्माण में राम, लक्ष्मण, सीता तथा हनुमान के नर्तकों द्वारा नृत्य शैली में राम कथा की प्रस्तुति दी जाती है। इसमें राम कथा के राम जन्म, वन गमन, स्वर्ण मृग बध, सीता हरण, लंका दहन आदि प्रसंगों पर ढोल की तालों के साथ नृत्य किया जाता है। प्रत्येक ताल को नाचने के बाद रामायण के पात्र विश्राम करते हैं और बीच बीच में अन्य पात्रों द्वारा दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है। राम कथा को जागर शैली में प्रस्तुत किया जाता है। देवभूमि के गौरवान्वित होने का अवसर है। समाज विज्ञानी संजय चौहान एवम वरिष्ठ पत्रकार रजपाल बिष्ट का कहना है कि उत्तराखंड ने सदियों से लोक संस्कृति, लोक कलाओं तथा लोक गाथाओं को संजो कर रखा है। पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे को स्थानांतरित होती आ रही लोक संस्कृति रम्माण है। राम कथाओं में सबसे प्राचीन मुखौटा शैली और भल्दा परंपरा की लोक संस्कृति ने देवभूमि को गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। इसमें जंगली जीवों के आक्रमण का मनमोहक चित्रण म्योर-मुरैण नृत्य नाटिका भी इसमें समाहित है। सभी पात्र ढोल की थापों पर मंच करते हैं और इसमें कोई संवाद नहीं होता। बण्यांबण्यांण नृत्य के संबंध में कहा जाता है कि ये तिब्बत के व्यापारी थे जो व्यापार करने गांव में आते थे। एक बार चोरों ने इनका सब लूट दिया। इसे इस नृत्य के जरिए पेश किया गया है। रम्माण के अंत में भूमियाल देवता प्रकट होते हैं और समस्त गांववासी भूमियाल को एक परिवार विशेष के घर विदाई देने पहुंचते हैं। यहीं पूरे साल भर उसी परिवार द्वारा भूमियाल देवता की पूजा अर्चना की जाती है। कार्यकम में बद्रीनाथ विधायक लखपत बुटोला, नगरपालिका अद्यक्ष ज्योतिर्मठ देवेश्वरी शाह, सूर्या पुरोहित, कमल रतूड़ी, और हजारो की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
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