April 23, 2025

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हताश युवा क्या करें?

हताश युवा क्या करें?

भारत सरकार ने मान लिया है कि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के लिए रूसी सेना ने कई भारतीय युवाओं की भर्ती की है। इस प्रकरण में उठा मुख्य मुद्दा यह है कि आखिर भारतीय नौजवान कहीं भी, कैसा भी काम पाने के लिए इतने व्यग्र क्यों हैं? भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए रूस की सेना ने कई भारतीय युवाओं की भर्ती की है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ऐसे कम-से-कम 100 भारतीय नौजवान रूसी सेना में नौकरी कर रहे हैं। उनमें से कम-से-कम तीन को रूस ने मोर्चे पर तैनात किया है। यानी वे रूस की तरफ से युद्ध लड़ रहे हैं।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह संभवत: पहला मौका है, जब भारतीयों के सामूहिक रूप से भाड़े के सैनिक बनने की खबर आई है। सामने आईं जानकारियों के मुताबिक रूस की सेना ने दुबई के जरिए इन भारतीयों को अनुबंधित किया। रूस के गए नौजवानों के परिजनों का दावा है कि इन लोगों की नियुक्ति रूसी सेना की सहायता के लिए की गई थी, लेकिन यूक्रेन सीमा के पास ले जाकर उन्हें बताया गया कि उन्हें लड़ाई भी लडऩी है। मुद्दा उछलने के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इन भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए भारत सरकार रूस की सेना के साथ संपर्क में है।

विदेश मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों को आगाह किया है कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध से अपने आपको दूर रखें। लेकिन यह सलाह बेमतलब है। जब ये नौजवान रूस चले गए, तब वहां के हालात उनके अपने हाथ में नहीं होंगे। इसलिए विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर भारतीय नौजवान विदेशों में कहीं भी, कैसा भी काम पाने के लिए इतने व्यग्र क्यों हैं? आखिर खुद भारत सरकार ने युद्ध-ग्रस्त इजराइल में मेहनत-मजदूरी करने के लिए हजारों युवाओं को भेजने का करार किया है।

वहां जाने के लिए जुटी भीड़ में शामिल नौजावनों ने मीडिया से कहा था कि उन्हें इजराइल जाने का जोखिम मालूम है, लेकिन उन्हें लगता है कि ‘यहां भूखों मरने से बेहतर वहां काम करते हुए मरना है।’ असल मुद्दा युवाओं में समा गई यही मायूसी है। उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती परीक्षा में जो नजारा दिखा है, उससे आसानी से समझा जा सकता है कि ऐसी हताशा क्यों पैदा हो रही है। अगर यह स्थिति आज सार्वजनिक विमर्श में सर्व-मुख्य मुद्दा नहीं है, तो रूस गए नौजवानों की तमाम चिंताएं निरर्थक समझी जाएंगी।

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देहरादून। उत्तराखंड के प्रसिद्ध रंगकर्मी और मेघदूत नाट्य संस्था के संस्थापक एस.पी. ममगाईं ने यूनेस्को द्वारा भारत की प्राचीन धरोहर भरत मुनि रचित “नाट्य शास्त्र” को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जाने का स्वागत करते हुए इसे देर से उठाया गया सही कदम बताया है। उन्होंने कहा कि 36 अध्याय और नौ रस से युक्त नाट्य शास्त्र को भारतीय ज्ञान परम्परा में पंचम वेद माना गया है। श्री ममगाईं के अनुसार जब शेष दुनिया कबीलाई अवस्था में थी, तब ईसा से करीब पांच सौ वर्ष पूर्व भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना कर दी थी। विगत 18 अप्रैल को यूनेस्को ने भारत की दो धरोहरों क्रमश: भगवद्गीता और नाट्य शास्त्र को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया है। ममगाईं ने कहा कि भारतीय वांग्मय में वेदों के सार को नाट्य रूप में प्रदर्शन कला के जरिए दृश्य – श्रवण रूप में प्रस्तुत किए जाने की कदाचित विश्व की यह प्रथम विधा है। इस दृष्टि से यूनेस्को ने बहुत देर से एक अच्छा प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में अभी भी अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं, जो यूनेस्को की बाट जोह रहे हैं। बहरहाल देश के अमृत काल में यह एक बड़ी उपलब्धि है और दुनिया के तमाम रंगकर्मियों के लिए यह हर्षित होने का अवसर है। अब यह ज्ञान उन लोगों तक भी सहज सुलभ होगा जो अभी तक इससे वंचित थे। ममगाईं ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा शताब्दियों से विश्व को सांस्कृतिक चेतना और सभ्यता से पुष्पित – पल्लवित करती आई है, यह अलग बात है कि पश्चिम की दृष्टि भारत के प्रति कभी उदार नहीं रही लेकिन अब उम्मीद जग रही है कि भारत की महत्वपूर्ण विरासत को संरक्षण देने और उसकी पहुंच विश्व के हर संवेदनशील नागरिक तक सहज बनाने के प्रयास तेज होंगे। उन्होंने कहा कि नाट्य शास्त्र भरत मुनि की कृति ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व की दृष्टि से महान रचना है। विश्व को भारतीय ज्ञान परम्परा का इससे सहज बोध होगा। श्री ममगाईं ने इस बात पर जोर दिया कि भरत मुनि का नाट्य शास्त्र प्रदर्शन कलाओं की दृष्टि से विश्व का सबसे पुराना और प्रामाणिक ग्रंथ है और इसकी महत्ता इससे बढ़ जाती है कि सदियों बाद भी उस पर टीकाएं लिखी गई, यह क्रम आज भी निरंतर जारी है। इसीलिए भारतीय मनीषियों ने इसे पंचम वेद के रूप में निरूपित किया है। उन्होंने यूनेस्को के इस निर्णय को भारतीय रंगकर्म परम्परा के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है।