उत्तरकाशी। यमुनोत्री धाम के लिए नामित पुलिस अधिकारी, पुलिस महानिरीक्षक प्रशिक्षण अनन्त शंकर ताकवाले ने बडकोट, जानकीचट्टी पहुंचने पर यात्रा मार्ग व यात्रा व्यवस्था का जायजा लिया।।उनके द्वारा यमुनोत्री धाम यात्रा मार्ग का देहरादून से डामटा,नौगांव, बडकोट, जानकीचट्टी तक का स्थलीय निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान यात्रा रुट पर मुख्य पड़ावों, पुलिस चौकियों व दुर्घटना सम्भावित संवेदनशील स्थानों का जायजा भी लिया। उन्होंने संवेदनशील तथा संकरे मार्गों पर सुगम यातायात एवं सुरक्षा के दृष्टिगत पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल को भली-भांति ब्रीफ कर ड्यूटी करने के निर्देश दिये। दोबाटा में स्थापित बायोमैट्रिक केन्द्र पर रजिस्ट्रेशन चैकिंग के दौरान यातायात व्यवस्था को बनाये रखने के लिए वाहनों को सुव्यवस्थित तरीके से पार्क करने ,लाउड हेलर के माध्यम से यात्रियों को यात्रा सम्बन्धी जरुरी मार्गदर्शन करने के भी निर्देश दिये। उन्होंने बाजार,कस्बा क्षेत्रों में वाहनों को अनावश्यक पार्क न होने देने, वाहनों को निर्धारित पार्किंग स्थलों पर पार्क करने तथा व्यापारियों को भारी वाहनों को रात्रि के समय में अनलोडिंग करवाने के सम्बन्ध में अवगत कराया गया। उन्होंने यात्रा रुट पर पडने वाली पुलिस चौकियों, बैरियर, ड्यूटी प्वाइंट आदि का निरीक्षण कर वहां पर कर्मचारियों के रहने-खाने तथा मूलभूत सुविधाओं को दुरस्त रखने के निर्देश दिये गये। उन्होंने पालीगाड से जानकीचट्टी तक नैरो पैच में सुगम यातायात के लिए बीच-बीच में होल्डिंग प्वाईंट चिन्हित करने, बडे वाहनों को रोटेशन के तहत भेजने सम्बन्धी जरुरी दिशा-निर्देश दिये गये।
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देहरादून। उत्तराखंड के प्रसिद्ध रंगकर्मी और मेघदूत नाट्य संस्था के संस्थापक एस.पी. ममगाईं ने यूनेस्को द्वारा भारत की प्राचीन धरोहर भरत मुनि रचित “नाट्य शास्त्र” को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जाने का स्वागत करते हुए इसे देर से उठाया गया सही कदम बताया है। उन्होंने कहा कि 36 अध्याय और नौ रस से युक्त नाट्य शास्त्र को भारतीय ज्ञान परम्परा में पंचम वेद माना गया है। श्री ममगाईं के अनुसार जब शेष दुनिया कबीलाई अवस्था में थी, तब ईसा से करीब पांच सौ वर्ष पूर्व भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना कर दी थी। विगत 18 अप्रैल को यूनेस्को ने भारत की दो धरोहरों क्रमश: भगवद्गीता और नाट्य शास्त्र को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया है। ममगाईं ने कहा कि भारतीय वांग्मय में वेदों के सार को नाट्य रूप में प्रदर्शन कला के जरिए दृश्य – श्रवण रूप में प्रस्तुत किए जाने की कदाचित विश्व की यह प्रथम विधा है। इस दृष्टि से यूनेस्को ने बहुत देर से एक अच्छा प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में अभी भी अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं, जो यूनेस्को की बाट जोह रहे हैं। बहरहाल देश के अमृत काल में यह एक बड़ी उपलब्धि है और दुनिया के तमाम रंगकर्मियों के लिए यह हर्षित होने का अवसर है। अब यह ज्ञान उन लोगों तक भी सहज सुलभ होगा जो अभी तक इससे वंचित थे। ममगाईं ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा शताब्दियों से विश्व को सांस्कृतिक चेतना और सभ्यता से पुष्पित – पल्लवित करती आई है, यह अलग बात है कि पश्चिम की दृष्टि भारत के प्रति कभी उदार नहीं रही लेकिन अब उम्मीद जग रही है कि भारत की महत्वपूर्ण विरासत को संरक्षण देने और उसकी पहुंच विश्व के हर संवेदनशील नागरिक तक सहज बनाने के प्रयास तेज होंगे। उन्होंने कहा कि नाट्य शास्त्र भरत मुनि की कृति ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व की दृष्टि से महान रचना है। विश्व को भारतीय ज्ञान परम्परा का इससे सहज बोध होगा। श्री ममगाईं ने इस बात पर जोर दिया कि भरत मुनि का नाट्य शास्त्र प्रदर्शन कलाओं की दृष्टि से विश्व का सबसे पुराना और प्रामाणिक ग्रंथ है और इसकी महत्ता इससे बढ़ जाती है कि सदियों बाद भी उस पर टीकाएं लिखी गई, यह क्रम आज भी निरंतर जारी है। इसीलिए भारतीय मनीषियों ने इसे पंचम वेद के रूप में निरूपित किया है। उन्होंने यूनेस्को के इस निर्णय को भारतीय रंगकर्म परम्परा के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है।
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