April 24, 2025

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समान संहिता या सियासत?

समान संहिता या सियासत?

देश में समान नागरिक संहिता हो, यह अपेक्षा अपने-आप में उचित है। लेकिन ऐसी अपेक्षाओं का इस्तेमाल फौरी सियासी फायदे के लिए किया जाए, यह वाजिब नहीं है। इसलिए बेहतर होगा कि सरकारें पहले आम-सहमति से तैयार करें, ताकि उनके इरादे पर सवाल ना उठें।
उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। समान नागरिक संहिता लागू करना भारतीय जनता पार्टी के बुनियादी एजेंडे का हिस्सा रहा है। इसलिए इसमें कोई असामान्य बात नहीं है कि कोई भाजपा सरकार इसे लागू करने की दिशा में बढ़े। लेकिन मुद्दा प्रस्तावित संहिता के समान होने का है। समान संहिता का सीधा अर्थ यह है कि यह देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होगी, चाहे वे किसी मजहब, जाति या समुदाय से संबंधित हों। इस कसौटी को ध्यान में रखें, तो उत्तराखंड की पहल समस्याग्रस्त नजर आती है, क्योंकि राज्य के आदिवासी समुदायों को इससे बाहर रखने का फैसला किया गया है। क्यों और इसका क्या तर्क है? अगर कथित समान संहिता लागू होने के बाद भी आदिवासी समुदायों को अपनी परंपरा और मान्यताओं के मुताबिक जीने की छूट बनी रहेगी, तो यही सुविधा अन्य समुदायों को क्यों नहीं मिलनी चाहिए? इस बिंदु पर कर उत्तराखंड की संहिता एक स्पष्ट सोच या सही इरादे पर आधारित पहल लगने के बजाय फौरी राजनीतिक फायदे के मकसद से की गई पहल मालूम पडऩे लगती है।

इससे यह धारणा गहराती है कि इसके पीछे इरादा महजबी आधार पर ध्रुवीकरण को मजबूती देना है, ताकि भाजपा के समर्थक चुनावों में पार्टी को विजयी बनाने के लिए उत्साहित बने रहें। खबरों के मुताबिक नई नागरिक संहिता के लागू होने के बाद राज्य में बहु-विवाह, इद्दत, हलाला आदि जैसी प्रथाओं पर रोक लग जाएगी। लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों के लिए पुलिस में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी हो जाएगा। बाल विवाह पर भी रोक लगाने की बात इसमें शामिल की गई है, लेकिन यह कोई नई पहल नहीं है। बल्कि सवाल तो यह उठेगा कि इस सिलसिले में पहले से लागू कानून पर अमल सुनिश्चित कराने में भाजपा सरकार ने कितनी दिलचस्पी ली है? देश में समान नागरिक संहिता हो, यह अपेक्षा अपने-आप में उचित है। लेकिन ऐसी अपेक्षाओं का इस्तेमाल फौरी सियासी फायदे के लिए किया जाए, यह उचित नहीं है। इसलिए बेहतर होगा कि सरकारें पहले आम-सहमति से तैयार करें, ताकि उनके इरादे पर सवाल ना उठें।

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देहरादून। उत्तराखंड के प्रसिद्ध रंगकर्मी और मेघदूत नाट्य संस्था के संस्थापक एस.पी. ममगाईं ने यूनेस्को द्वारा भारत की प्राचीन धरोहर भरत मुनि रचित “नाट्य शास्त्र” को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जाने का स्वागत करते हुए इसे देर से उठाया गया सही कदम बताया है। उन्होंने कहा कि 36 अध्याय और नौ रस से युक्त नाट्य शास्त्र को भारतीय ज्ञान परम्परा में पंचम वेद माना गया है। श्री ममगाईं के अनुसार जब शेष दुनिया कबीलाई अवस्था में थी, तब ईसा से करीब पांच सौ वर्ष पूर्व भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना कर दी थी। विगत 18 अप्रैल को यूनेस्को ने भारत की दो धरोहरों क्रमश: भगवद्गीता और नाट्य शास्त्र को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया है। ममगाईं ने कहा कि भारतीय वांग्मय में वेदों के सार को नाट्य रूप में प्रदर्शन कला के जरिए दृश्य – श्रवण रूप में प्रस्तुत किए जाने की कदाचित विश्व की यह प्रथम विधा है। इस दृष्टि से यूनेस्को ने बहुत देर से एक अच्छा प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में अभी भी अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं, जो यूनेस्को की बाट जोह रहे हैं। बहरहाल देश के अमृत काल में यह एक बड़ी उपलब्धि है और दुनिया के तमाम रंगकर्मियों के लिए यह हर्षित होने का अवसर है। अब यह ज्ञान उन लोगों तक भी सहज सुलभ होगा जो अभी तक इससे वंचित थे। ममगाईं ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा शताब्दियों से विश्व को सांस्कृतिक चेतना और सभ्यता से पुष्पित – पल्लवित करती आई है, यह अलग बात है कि पश्चिम की दृष्टि भारत के प्रति कभी उदार नहीं रही लेकिन अब उम्मीद जग रही है कि भारत की महत्वपूर्ण विरासत को संरक्षण देने और उसकी पहुंच विश्व के हर संवेदनशील नागरिक तक सहज बनाने के प्रयास तेज होंगे। उन्होंने कहा कि नाट्य शास्त्र भरत मुनि की कृति ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व की दृष्टि से महान रचना है। विश्व को भारतीय ज्ञान परम्परा का इससे सहज बोध होगा। श्री ममगाईं ने इस बात पर जोर दिया कि भरत मुनि का नाट्य शास्त्र प्रदर्शन कलाओं की दृष्टि से विश्व का सबसे पुराना और प्रामाणिक ग्रंथ है और इसकी महत्ता इससे बढ़ जाती है कि सदियों बाद भी उस पर टीकाएं लिखी गई, यह क्रम आज भी निरंतर जारी है। इसीलिए भारतीय मनीषियों ने इसे पंचम वेद के रूप में निरूपित किया है। उन्होंने यूनेस्को के इस निर्णय को भारतीय रंगकर्म परम्परा के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है।