देहरादून। श्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति ने आगामी यात्राकाल को देखते हुए यात्रा व्यवस्थाओं में व्यापक सुधार एवं श्री बदरीनाथ- केदारनाथ धाम तथा सभी अधिनस्थ मंदिरों में तीर्थयात्रियों को दर्शन- पूजा में व्यापक सुविधाएं प्रदान करने की कवायद शुरू कर दी है इसी क्रम में श्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति ( बीकेटीसी) अध्यक्ष अजेंद्र अजय के निर्देश पर बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी योगेंद्र सिंह ने देहरादून कार्यालय से अधिकारियों कर्मचारियों की वर्चुअल बैठक को संबोधित किया।
मुख्य कार्याधिकारी ने कहा कि श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि 14 फरवरी बसंत पंचमी को तय हो जायेगी। इसी के साथ -साथ मंदिर समिति को श्री बदरीनाथ तथा श्री केदारनाथ में अग्रिम रूप से ब्यवस्थायें करनी होगी इसके लिए सकारात्मक एवं सेवा भाव से सभी को यथा समय संबंधित कार्य पूरे करने है। बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि वर्चुअल बैठक में मंदिरों में सरल -सुगम दर्शन व्यवस्था, आन लाईन पोर्टल से आन लाईन पूजा, आफलाईन पूजा व्यवस्था, विश्राम गृहों में पर्याप्त यात्री सुविधाएं, मंदिरों के प्रचार- प्रसार, भंडार सामग्री, पर्याप्त भोग सामग्री, खाद्यान व्यवस्था, दानीदाताओं के सहयोग से तीर्थ यात्रियों हेतु भंडारा, आडियों- वीडियों सिस्टम विकसित करने,सीसीटीवी, तीर्थयात्रियों हेतु आवास व्यवस्था, कर्मचारियों हेतु दोनों धामों में आवासीय व्यवस्था आदि विषयों पर अधिकारियों- विश्राम गृह प्रबंधकों संबंधित काउंटर प्रभारियों ने अपने सुझाव रखे।
मुख्य कार्याधिकारी ने निर्देश दिये कि सभी अधिकारी- कर्मचारी तीन दिन के अंदर अपने सुझाव कार्यालय को उपलब्ध करा दें। बताया कि शीघ्र दूसरी बैठक में प्राप्त प्रस्तावों सुझावों को अमलीजामा पहनाया जायेगा।
बैठक में कार्याधिकारी आरसी तिवारी, अधिशासी अभियंता अनिल ध्यानी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी गिरीश चौहान, सहायक अभियंता गिरीश देवली एवं विपिन तिवारी, मंदिर अधिकारी राजेंद्र चौहान, निजी सचिव प्रमोद नौटियाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट, वेदपाठी रमेश भट्ट, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बिजेंद्र बिष्ट डीएस भुजवाण, यदुवीर पुष्पवाण,कुलदीप भट्ट, विवेक थपलियाल रमेश नेगी, अनसुया नौटियाल गिरीश रावत, संदीप कपरवाण,लेखाकार भूपेंद्र रावत, जगमोहन बर्त्वाल, संतोष तिवारी, किशन त्रिवेदी, प्रबंधक विशाल पंवार एवं प्रदीप सेमवाल, संजय भट्ट,अमित राणा, भूपेंद्र राणा,अनिल भट्ट, देवी प्रसाद तिवारी, डा. हरीश गौड़, विश्वनाथ, संजय चमोली दीपेंद्र रावत, अतुल डिमरी, केदार सिंह रावत,सोबन सिंह रावत, संजय तिवारी,पुष्कर रावत, अजीत भंडारी नवीन भंडारी, अमित देवराड़ी, वैभव उनियाल आदि ने चर्चा में सहभागिता की।
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देहरादून। उत्तराखंड के प्रसिद्ध रंगकर्मी और मेघदूत नाट्य संस्था के संस्थापक एस.पी. ममगाईं ने यूनेस्को द्वारा भारत की प्राचीन धरोहर भरत मुनि रचित “नाट्य शास्त्र” को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जाने का स्वागत करते हुए इसे देर से उठाया गया सही कदम बताया है। उन्होंने कहा कि 36 अध्याय और नौ रस से युक्त नाट्य शास्त्र को भारतीय ज्ञान परम्परा में पंचम वेद माना गया है। श्री ममगाईं के अनुसार जब शेष दुनिया कबीलाई अवस्था में थी, तब ईसा से करीब पांच सौ वर्ष पूर्व भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना कर दी थी। विगत 18 अप्रैल को यूनेस्को ने भारत की दो धरोहरों क्रमश: भगवद्गीता और नाट्य शास्त्र को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया है। ममगाईं ने कहा कि भारतीय वांग्मय में वेदों के सार को नाट्य रूप में प्रदर्शन कला के जरिए दृश्य – श्रवण रूप में प्रस्तुत किए जाने की कदाचित विश्व की यह प्रथम विधा है। इस दृष्टि से यूनेस्को ने बहुत देर से एक अच्छा प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में अभी भी अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं, जो यूनेस्को की बाट जोह रहे हैं। बहरहाल देश के अमृत काल में यह एक बड़ी उपलब्धि है और दुनिया के तमाम रंगकर्मियों के लिए यह हर्षित होने का अवसर है। अब यह ज्ञान उन लोगों तक भी सहज सुलभ होगा जो अभी तक इससे वंचित थे। ममगाईं ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा शताब्दियों से विश्व को सांस्कृतिक चेतना और सभ्यता से पुष्पित – पल्लवित करती आई है, यह अलग बात है कि पश्चिम की दृष्टि भारत के प्रति कभी उदार नहीं रही लेकिन अब उम्मीद जग रही है कि भारत की महत्वपूर्ण विरासत को संरक्षण देने और उसकी पहुंच विश्व के हर संवेदनशील नागरिक तक सहज बनाने के प्रयास तेज होंगे। उन्होंने कहा कि नाट्य शास्त्र भरत मुनि की कृति ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व की दृष्टि से महान रचना है। विश्व को भारतीय ज्ञान परम्परा का इससे सहज बोध होगा। श्री ममगाईं ने इस बात पर जोर दिया कि भरत मुनि का नाट्य शास्त्र प्रदर्शन कलाओं की दृष्टि से विश्व का सबसे पुराना और प्रामाणिक ग्रंथ है और इसकी महत्ता इससे बढ़ जाती है कि सदियों बाद भी उस पर टीकाएं लिखी गई, यह क्रम आज भी निरंतर जारी है। इसीलिए भारतीय मनीषियों ने इसे पंचम वेद के रूप में निरूपित किया है। उन्होंने यूनेस्को के इस निर्णय को भारतीय रंगकर्म परम्परा के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है।
यात्रा मार्ग व यात्रा व्यवस्था का लिया जायजा