टिहरी । आगामी 4 मई को विश्व प्रसिद्ध भू बैकुंठ धाम बद्रीनाथ के कपाट खुलने को लेकर टिहरी गढ़वाल स्थित नरेंद्रनगर के राजदरबार में परंपरागत गाडू घड़े के लिए तिलों के तेल पिरोने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिसको लेकर राजमहल को दुल्हन की तरह सजा दिया गया है।
विश्व प्रसिद्धभगवान बद्री विशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग होने वाला तिल का तेल नरेंद्रनगर स्थित राजमहल में महारानी की अगुवाई में बड़ी ही पवित्रता से राजपरिवार और सुहागिन महिलाओं के हाथों से निकाला जाता है। राजमहल में पौराणिक परंपरा को आज भी विधि विधान से निभाया जा रहा है। टिहरी सांसद और महारानी राज्य लक्ष्मी शाह की उपस्थिति में पूजा अर्चना की गई और उसके बाद सुहागिन महिलाओं ने पीला वस्त्र धारण कर सिलबट्टे और ओखली से तिलों का तेल पिरोया गया। आपको बता दे बद्रीनाथ कपाट के लिए यह तेल बिना किसी मशीन के पिरोये जाता है। तेल को परंपरागत तरीके और हाथों से ही निकाला जाता है।तेल निकालने की यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।इसे ही बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने में शुरुआती प्रक्रिया माना जाता है।
तिलों का यह तेल भगवान बदरी विशाल के अभिषेक के लिए प्रयोग किया जाता है। गाडू घड़ा तेल कलश यात्रा और भगवान बद्री विशाल के कपाट खोलने की तिथि बसंत पंचमी के पावन अवसर पर राजपुरोहितों द्वारा निकाली जाती है। इस बार भगवान बद्री विशाल के कपाट श्रद्धालुओं के लिए आगामी 4मई को सुबह 6 बजे खोल दिए जाएंगे। टिहरी सांसद और महारानी राज्य लक्ष्मी शाह ने कहां की बद्रीनाथ कपाट खुलने की प्रथम प्रक्रिया नरेंद्र नगर के राजमहल में तिल के तेल की पिरोई से ही शुरू होती है। उन्होंने तिल की पिरोई को महत्व देते हुए बताया गाडू घड़ा कलश यात्रा के दौरान पौराणिक परंपराओं को जीवित रखते हुए धार्मिक विधि विधान से ही कार्यक्रम होता है।उन्होंने चार धाम यात्रा में आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों को अधिक से अधिक संख्या में पहुंचने का न्योता दिया। उन्होंने कहा कि गाड़ू घड़ा कलश तेल यात्रा परंपरा गत रूप से चली आ रही है और आगे भी चलेगी।उन्होंने बताया कि तिलों का तेल निकाल ने के लिए सुहागिन महिलाओं को ही बुलाया जाता है। डिमरी समाज के शैलेन्द्र डिमरी ने बताया कि ये परंपरा शंकराचार्य द्वारा स्थापित है जो सदियों से चली आ रही है। डिमरी समाज द्वारा बसंत पंचमी के अवसर पर गाडू घड़े को राज दरबार में लाया जाता है और उसी दिन श्री बद्रीनाथ जी के कपाट खोलने की तिथि तय होती है ।
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